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अनीह ईषना: July 2015
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अनीह ईषना. Thursday, 23 July 2015. चाह नहीं अरमान बनो तुम. बदलते वक़्त की पहचान बनो तुम. पशु नहीं इंसान बनो तुम ,. ज़िंदगी में कठिनाइयां हैं तो क्या. लक्ष्य पर चमकते निशान बनो तुम. चाह नहीं अरमान बनो तुम. खुशीयों का प्यारा जहाँ बनो तुम ,. हर शाह को जो मात दे. वो आगाज़ नहीं अंजाम बनो तुम ।. स्वाति वल्लभा राज. Posted by Swati Vallabha Raj. Subscribe to: Posts (Atom). There was an error in this gadget. चाह नहीं अरमान बनो तुम. Noida, UP, India. View my complete profile. चर्चामंच. सहज साहित्य. कल आज और कल.
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BINDAAS_BAATEN: August 2011
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मित्र-मधुर. मधुर वाणी. मेरा प्रोफाइल देंखे. कोसीर.ग्रामीण मित्र. साक्षात्कार. अभिब्यक्ति. मित्र मधुर. साहित्य प्रेमी संघ. कंप्यूटर दुनिया. कविताबाज़ी. चर्चा मंच. टैस्ट चर्चामंच. बिना कमेन्ट के भी मै खुश हु।. अब कम्प्यूटर सीखें हिंदी में. अखबार और किताबें. हिंदी विडियो देखें. फ़ॉन्ट कन्वर्टर. पैसे कमाए. हिंदी में लिखे. गेम खेले. मेरी रचनाएं. मेरे राजदार समर्थक मित्र बनने का शुक्रिया. गुरुवार, 25 अगस्त 2011. कोरे सपने. बिना तुम्हारे बंजर होगा आसमान. सब तरफ गोल कोरी लकीर. 1 टिप्पणी:. मुर्गा. कापि...
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बूँद-बूँद लम्हे: July 2013
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Friday, 26 July 2013. मेरा योरोप भ्रमण -भाग ५ "जर्मनी की सैर व स्विट्ज़रलैंड में प्रवेश" *. सुबह नाश्ते के बाद हम लोग निकले जर्मनी के लिए! जर्मनी पहुँचते-पहुँचते ग्यारह के आस-पास बज ही गये होंगे! रास्ते में मनीष, हमारे गाइड. हमें हिट्लर (Hitler) के बारे में बाताते आए! निकली. और सबने खूब ज़ोर से तालियाँ बजाईं! वहाँ पहुँचकर हम लोग Cologn Cathedral देखने गये! अंदर से ये चर्च बहुत ही खूबसूरत और काफ़ी बड़ा था! कुछ memoirs लिए! Cologne Cathedral inside (Photo: Anita Lalit). आज से अगले तीन द&#...वही स...
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बूँद-बूँद लम्हे: June 2014
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Monday, 2 June 2014. मेरी कविताएँ 'गर्भनाल' पत्रिका के जून २०१४ अंक में *. मेरी कविताएँ 'गर्भनाल' पत्रिका के जून २०१४ अंक में (पृष्ठ संख्या ६८. Http:/ www.garbhanal.com/Garbhanal%2091.pdf. प्रेम का धागा. लपेट दिया है मैनें. तुम्हारे चारों ओर.…. तुम्हारा नाम पढ़ते हुए. तुमसे ही छुपा कर! और बाँध दी अपनी साँसें. मज़बूती से सभी गाँठों में! अब मन्नत पूरी होने के पहले. तुम चाहो तो भी उसे खोल नहीं पाओगे. बिना मेरी साँसों को काटे …! आईना तो हर दिल में होता है,. लिए हाथ में. कोई न कोई पत्थर? और हो गया. कल 27 जì...
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बूँद-बूँद लम्हे: May 2014
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Friday, 23 May 2014. बाकी रहा . तेरा निशाँ! अंतरजाल पर साहित्य प्रेमियों की मासिक पत्रिका 'साहित्य कुञ्ज' के मई द्वितीय अंक में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ. Http:/ www.sahityakunj.net/LEKHAK/A/AnitaLalit/kshanikayen.htm. प्रेम की बेड़ियाँ. फूलों का हार,. विरह के अश्रु. गंगा की धार,. समझे जो वेदना. प्रिय के मन की. योग यही जीवन का. है यही सार! दिल की मिट्टी थी नम. जब तूने रक्खा पाँव.,. अब हस्ती मेरी पथरा गयी. बाकी रहा . तेरा निशाँ! सपने दिखाए तुमने. पंख दिए तुमने. और कह दिया मुझसे. पाँव रखकर. माæ...
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बूँद-बूँद लम्हे: February 2014
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Tuesday, 11 February 2014. प्यार कब नहीं होता फ़ज़ाओं में? आसमाँ से बिखरता हल्दी-कुंकुम-महावर,. हवा के मेहँदी लगे पाँवों में उलझती …. सुनहरी पाजेब की रुनझुन,. आँचल में लहराते-सिमटते चाँद-सितारे,. सुर्ख़ डोरों से बोझिल …. क्षितिज पर झुकती बादलों की पलकें,. फूलों से टँकी रंग-बिरंगी चूनर की ओट में …. लजाते हुए धरा के सिन्दूरी गाल . प्यार कब नहीं होता फ़ज़ाओं. हम इंसान बिना शर्तों के प्यार कर पाते. Anita Lalit (अनिता ललित ). Subscribe to: Posts (Atom). बूँद-बूँद लम्हे. कविताकोश. त्रिवेणी. 1 मन-दीपक भा...मेर...
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बूँद-बूँद लम्हे: July 2014
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Sunday, 27 July 2014. प्रेम का उपहार हाइबन. यूँ कहिये, तो माँ हमारे घर की खुशियों की चाभी थीं! मेरे लिए तो आज भी हैं! ईश्वर भी धरती पर अपने इस रूप का सम्मान करता है! माँ तेरा स्नेह. ईश्वर की महिमा. जीवन-प्राण।. माँ का अस्तित्व. ईश्वर के प्रेम का. है उपहार।. Anita Lalit (अनिता ललित ). Sunday, 20 July 2014. मेरी प्रेम कविताएँ. पत्रिका के जुलाई अंक. प्रेम की बहार. समय पत्रिका ऑनलाइन पढ़ी जा सकती है. इस लिंक पर-. Anita Lalit (अनिता ललित ). Labels: अनिता ललित. कविताएँ. Thursday, 10 July 2014. आज मचली,. मे...
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बूँद-बूँद लम्हे: April 2014
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Wednesday, 16 April 2014. काव्य-संग्रह 'बूँद-बूँद लम्हे' का लोकार्पण * -भाग-३- 'मीडिया कवरेज'. काव्य-संग्रह 'बूँद-बूँद लम्हे' के लोकार्पण (१२ अप्रैल २०१४) की सूचना अगले दिन १३ अप्रैल २०१४ को विभिन्न समाचारपत्रों तथा ई पेपरों में दी गई (Newspapers and e-papers). Anita Lalit (अनिता ललित ). Tuesday, 15 April 2014. कुछ मख्मली एहसास,. ख़्वाबों का सफर तय करते हुए,. जब ताबीर में बदलते हैं . तो उनमें फूल खिल उठते हैं. ऐसा ही एक एहसास, एक ऐसा ही ख़्वाब. बूँद-बूँद लम्हे'. व्हील्स क्लब, लखनऊ. काव्य-सæ...कार...
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