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पूरबिया: February 2011
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पूरबिया. भदेस संवेदना का अक्षर स्पंदन. Sunday, February 20, 2011. कोई लांछन नहीं. बजाप्ता अब नाम है उसका. लाड़ के साथ पुकारा. शख्सियत के साथ. काढ़ा जानेवाला नाम. बहनों में दो उससे पहले. एक उसके बाद. और आखिर में. भाइयों की युगलबंदी. सबसे पहले मां ने कहा. अपनी सबसे अलग. इस बेटी को. फिर बहनों ने. बाद में चलकर. रक्षा बंधन के लिए. कलाई आगे करने वाले. उम्र में आधे भाइयों ने. किया विकास. इस पुकारू परंपरा का. दूध पीने से ज्यादा. दूध काटने की आदत. प्यार पाने से ज्यादा. जिद्दी फितरत. फूंका शंख. मचलने के. कोई म...
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निठल्ले की डायरी: February 2011
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निठल्ले की डायरी. Friday, 25 February 2011. एक्झोटिक होने का सुख. Strikingly, excitingly, or mysteriously different or unusual. जिस दिन खाने में कढ़ी हो उस दिन शहीदाना अंदाज़ में ढाबों के आस-पास भटकते हुए लगता है कि जीवन कोई हंसी खेल नहीं. मैंने. दार्शनिकता. दार्शनिक. आदतन फोटो गूगल इमेज से चुराया हुआ है. Links to this post. Labels: एक्झोटिक आनंद. प्रकृति. Tuesday, 8 February 2011. सकल बन फूल रही सरसों. अध्यात्म. Links to this post. Labels: आस्था. कव्वाली. निजामुद्दीन. Subscribe to: Posts (Atom). हो...
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निठल्ले की डायरी: August 2012
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निठल्ले की डायरी. Wednesday, 8 August 2012. बाढ़-टूरिज्म. देखा है किसी शहर को डूबते हुए? चौखटों, आंगनों, दीवारों,. किलकारियों, झल्लाहटों को. गड़प' से मटमैले पानी में. गुम हो जाते देखा है? सर पर बर्तन-भांडे, संसार. का बोझ लिए लड़खड़ाती औरतों को देखा है? लाइन में लग बासी पुरियों और सड़े आलुओं की सब्जी. लेते स्कूल ड्रेस में खड़े बच्चे के कीचड खाए पैरों को देखा है? देखा है गौमाता की सडती लाशों पर बैठे. कौओं की उत्साह भरी छीना-झपटी को? सरकारी अस्पताल के आँगन में. Links to this post. Labels: कविता. गा...
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निठल्ले की डायरी: January 2011
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निठल्ले की डायरी. Monday, 31 January 2011. प्रेम कविता. सिर्फ इसलिए कि वह 'सार्वजनिक' मंच है. खैर अपन अभी कोई इत्ते तीसमारखां है भी नहीं कि किसी को फर्क पड़े, सो जो मन में आएगा लिखा करेंगे. फिलहाल अपनी एकमात्र टूटी-फूटी नौसिखिया-नुमा प्रेम-कविता लगा रहा हूँ, जो करीब छह महीने पहले लिखी थी. प्रेम कविता. प्रेम कविता कैसे लिखूं? कैसे करूँ बयाँ? जो भरा है मन में, जो उमड़ आता है गले तक,. जो छलक आया है चेहरे पर, ज़िंदगी में,. या कुछ नहीं,. उपमाएं, रूपक. कुछ भी तो नहीं,. फेंक कर कागज़ कलम,. Links to this post.
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पूरबिया: April 2011
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पूरबिया. भदेस संवेदना का अक्षर स्पंदन. Monday, April 18, 2011. अपसेट कर गया लांसेट. Links to this post. Labels: बच्चे. रिपोर्ट. लांसेट. Sunday, April 10, 2011. जन आंदोलनों का जंतर मंतर. जब इस देश के नेताओं में. लूट प्रवृति आम हो गई. पूछ रही है चंबल घाटी. मैं ही क्यों बदनाम हो गई. दुई हाथी के मांगै छै दाम. बेचै छै कोखी के बेटा के चाम. बड़का कहाबै छै कलजुग के कसाई. बाप कहाबै छै कलजुग के कसाई. इसे भी पढ़ें. कविता का आंदोलन : आंदोलन की कविता. Http:/ puravia.blogspot.com/2010/10/blog-post 11.html. खबरिय...
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निठल्ले की डायरी: June 2011
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निठल्ले की डायरी. Tuesday, 14 June 2011. कबिरा खडा बाजार में. जितनी दुकानें सब्जियों और अनाज की होती हैं, लगभग उतनी ही कपड़ों, और आईना, बिंदी, चूड़ी. रुमाल, कंघी,पिन, तेल, चप्पल, आदि की होती हैं. ये सभी दुकानदार एक बजार से दूसरे बजार घूम घूमकर. Links to this post. Labels: आदिवासी. Subscribe to: Posts (Atom). इकबालिया अबयान. View my complete profile. इधर आते रहते हैं. कबिरा खडा बाजार में. यही सब निठल्ले मुद्दे. आत्मावलोकन. आदिवासी. एक्झोटिक आनंद. कव्वाली. किस्से. क्रांति. छुट्टी. जनरल नालिज. मन ही मन.
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निठल्ले की डायरी: December 2010
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निठल्ले की डायरी. Friday, 31 December 2010. दूर तक याद -ए -वतन आई थी समझाने को. हम जिसपे कि तैयार थे मर जाने को. जीते जी हमने छुडाया उसी काशाने. क्या न था और बहाना कोई तडपाने को. आसमान क्या यही बाकी था सितम ढाने को. लाके ग़ुरबत. में जो रक्खा हमें तरसाने को. फिर न गुलशन में हमें लाएगा सैयाद कभी. याद आयेगा किसे यह दिल -ए -नाशाद कभी. क्यों सुनेगा तू हमारी कोई फ़रियाद कभी. हम भी इस बाग़ में थे क़ैद से आज़ाद कभी. खुश रहो अहल -ए -वतन , हम तो सफ़र करते हैं. मिला पाने को *. नासेहा. हम भी आराम उठì...हम भì...
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पूरबिया: October 2010
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पूरबिया. भदेस संवेदना का अक्षर स्पंदन. Friday, October 29, 2010. दैनिक जागरण" में पूरबिया. Links to this post. Labels: पूरबिया. Wednesday, October 27, 2010. मारे जाएंगे. अलंकरण समारोहों में. गुलदस्तों का भार उठाना. कितनी बड़ी कृतज्ञता है. विनम्रता है कितनी बड़ी. अपने समय के प्रति. हमारे समय के सुलेखों. आैर पुस्तकालय के ताखों पर रखे. अग्रलेखों ने. लेख से ज्यादा बदली है लिखावट. उतनी ही जितनी. उनकी बातें सुनकर. महसूस होता है. श्रोताओं की पहली, दूसरी आैर. अंतिम कतार को. समय की धूल पोंछकर. Links to this post.
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पूरबिया: November 2011
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पूरबिया. भदेस संवेदना का अक्षर स्पंदन. Thursday, November 3, 2011. 8216;फिर से’ में पूरबिया शादीनामा. 1 नवंबर 2011 को दैनिक जागरण, राष्ट्रीय संस्करण के नियमित स्तंभ ‘फिर से’ में पूरबिया. शादीनामा. Links to this post. Labels: दैनिक जागरण. पूरबिया. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. फिसलन तो थी लेकिन इतनी सीधी नहीं. सेक्स फैंटेसी का ओवरडोज. तो खारी नहीं मीठी होती! नमक किसी मिठाई की बेटी नहीं हाथ और पांव का ग...1) याद आता है अभिनेता महान कì...खबरिया चैनलो...थोड़ì...संब...
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