ismatzaidi.blogspot.com
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی : 03/14/15
http://ismatzaidi.blogspot.com/2015_03_14_archive.html
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی. मालिक तेरी अताओं की हद क्या करूँ बयाँ वो भी दिया कि जिस का था वह्म ओ गुमाँ नहीं. मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य. शनिवार, 14 मार्च 2015. इस बार पक्का वादा है कि अब ब्लॉग पर आने में इतनी देर नहीं लगेगी. ज़ुल्म की ये इंतहा और मुन्सिफ़ी सोई हुई. गर्म है बाज़ार ए ग़म लेकिन ख़ुशी सोई हुई. रेशमी बिस्तर प जागी बादशाहत रात भर. पत्थरों के फ़र्श पर है मुफ़लिसी सोई हुई. ख़ुश्बुओं की ओढ़ कर चादर , बिछा कर रौशनी. बाग़ के हर फूल पर थी चाँदनी सोई हुई. प्रस्तुतकर्ता. इस्मत ज़ैदी. चाँदनी. हर कोई म...
ismatzaidi.blogspot.com
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی : 11/18/14
http://ismatzaidi.blogspot.com/2014_11_18_archive.html
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی. मालिक तेरी अताओं की हद क्या करूँ बयाँ वो भी दिया कि जिस का था वह्म ओ गुमाँ नहीं. मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य. मंगलवार, 18 नवंबर 2014. एक अरसे के बाद ग़ज़ल की शक्ल में कुछ टूटे फूटे अल्फ़ाज़ और ख़यालात के साथ हाज़िर हूँ. लौट भी आओ सफ़र से. ख़बर भेजो कभी तो नामाबर से. यही हैं राब्ते अब मुख़्तसर से. बहुत दुश्वार है सहरा नविरदी. बस अब तुम लौट भी आओ सफ़र से. निशने पर हूँ मैं हर सम्त से ही. इधर से तीर और ख़ंजर उधर से. पराया कर दिया लहजे ने तेरे. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. 6 दिन पहले. हर को...
ombawra.blogspot.com
मौन के खाली घर में... ओम आर्य: August 2010
http://ombawra.blogspot.com/2010_08_01_archive.html
मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Friday, August 20, 2010. अब और बंजर होने की जगह नहीं हो. वे टूटें. भूकंप के मकानों की तरह. और फटें. बादलों की तरह. हम कहीं दूर सूखे में बैठ कर. देखें उनका टूटना और फटना. लिखे उनके दुख और खुश होवें. टूट पड़ें सड़क पे. लाल बत्ती के हरी होते हीं. और बाजू में. बच कर निकलने के लिए संघर्ष करते. साइकिल वाले की साँसों का. उथल-पुथल देखते हुए. पार कर जाएँ सफ़र. रात की तेज बारिश में. बह गयी हों सारी यादें. तब भी सुबह उठ कर हम टाल जाएँ. अपनी मासूमियत. उधर पत्थर फ...
ombawra.blogspot.com
मौन के खाली घर में... ओम आर्य: February 2011
http://ombawra.blogspot.com/2011_02_01_archive.html
मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Tuesday, February 8, 2011. रूह में नंगे जाना होता है. मैं चलता गया था उसकी तरफ. दूरी कितनी तय हुई मालूम नही. रास्ते में मै कही ठहरा नही जिस्म पर. और वो भी. रूह से पहले तक. दिखायी नही दी एक बार भी. अचानक से हुआ कि छू लूं. जैसे ही दिखी पर. अदृश्य हो गयी हाथ बढाते ही. तब लगा मैं. लिबास साथ लिये आ गया था. लौटना पड़ा मुझे. रूह में नंगे जाना होता है. Tuesday, February 08, 2011. Labels: अदृश्य. Saturday, February 5, 2011. और ये नया साल भी. तुम तक पहु...रूह...
pupadhyay.blogspot.com
होकर भी नहीं होना..: February 2011
http://pupadhyay.blogspot.com/2011_02_01_archive.html
होकर भी नहीं होना. क्योंकि अक्सर यहाँ होते हुये भी मैं यहाँ नहीं होता।. Sunday, February 6, 2011. नोट्स…. 2- उस दिन जब वो पारदर्शी काँच के उस पार थी, मैं उसे देख सकता था… उसे महसूस कर सकता था… उसके होठों को पढ सकता था… लेकिन हाथ बढाकर भी उसे छू नहीं सकता था…. कंप्लीटली इनकंप्लीट…. मेरे कुछ नोट्स ‘निर्मल‘. के लिये…. तस्वीर मानव के ब्लॉग. Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय). Links to this post. Labels: कुछ एं वें ही. निर्मल वर्मा. Subscribe to: Posts (Atom). इधर भी हैं अपन. अज़दकी अलमारी. वे दिन. एक आलसी ...
ismatzaidi.blogspot.com
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی : 05/30/13
http://ismatzaidi.blogspot.com/2013_05_30_archive.html
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی. मालिक तेरी अताओं की हद क्या करूँ बयाँ वो भी दिया कि जिस का था वह्म ओ गुमाँ नहीं. मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य. गुरुवार, 30 मई 2013. एक हिंदी ग़ज़ल प्रस्तुत करने का साहस कर रही हूँ. जो कमियाँ हों उन से अवगत कराने की कृपा अवश्य करें. हम कर्तव्यों को पूर्ण करें, माँगें केवल अधिकार नहीं. मानव से मानव प्रेम करे,संबंधों का व्यापार नहीं. जिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो. कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,र. 2379;ली,झूमर,टीका. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. कारवान ए अदब. प्र...
ismatzaidi.blogspot.com
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی : 08/06/13
http://ismatzaidi.blogspot.com/2013_08_06_archive.html
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی. मालिक तेरी अताओं की हद क्या करूँ बयाँ वो भी दिया कि जिस का था वह्म ओ गुमाँ नहीं. मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य. मंगलवार, 6 अगस्त 2013. आज उर्दू ग़ज़ल पर वापस आते हैं, यूँ तो ग़ज़ल, ग़ज़ल है चाहे वह किसी भी भाषा में हो. क्योंकि उस का आधार तो भावनाएं हैं , जज़्बात हैं. और इन्हें ज़ुबान के बदल जाने से. कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. शफ़क़त* निसार* की है ,निगाहों ने उम्र भर. महफ़ूज़* रक्खा माँ की दुआओं ने उम्र भर. शिकस्त= हार, पराजय. प्रस्तुतकर्ता. इस्मत ज़ैदी. नई पोस्ट. जाने क...सुब...
wwwjyotisingh.blogspot.com
काव्यांजलि: March 2015
http://wwwjyotisingh.blogspot.com/2015_03_01_archive.html
काव्यांजलि. गुरुवार, 26 मार्च 2015. युग परिवर्तन. न तुलसी होंगे, न राम. न अयोध्या नगरी जैसी शान . न धरती से निकलेगी सीता ,. न होगा राजा जनक का धाम . फिर नारी कैसे बन जाये. दूसरी सीता यहां पर ,. कैसे वो सब सहे जो. संभव नही यहां पर . अपने अपने युग के अनुसार ही. जीवन की कहानी बनती है ,. युग परिवर्तन के साथ. नारी भी यहॉ बदलती है . प्रस्तुतकर्ता. ज्योति सिंह. 2 टिप्पणियां:. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). ज्योति सिंह. Satna, m.p., India. ब्लॉग आर्काइव. 2 दिन पहले.
ismatzaidi.blogspot.com
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی : 12/06/12
http://ismatzaidi.blogspot.com/2012_12_06_archive.html
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی. मालिक तेरी अताओं की हद क्या करूँ बयाँ वो भी दिया कि जिस का था वह्म ओ गुमाँ नहीं. मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य. गुरुवार, 6 दिसंबर 2012. एक माह के अरसे के बाद एक बार फिर एक ग़ज़ल के साथ हाज़िर ए ख़िदमत हूं. हथियार तेरे किस को डराने के लिये हैं. हम तो तेरा हर वार बचाने के लिये हैं. हर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता. कुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं. आँसू को सदा ग़म से ही जोड़ा नहीं करते. नशेमन= घोंसला , नीड़. प्रस्तुतकर्ता. इस्मत ज़ैदी. नई पोस्ट. कारवान ए अदब. प्र...
ismatzaidi.blogspot.com
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی : 10/09/13
http://ismatzaidi.blogspot.com/2013_10_09_archive.html
शिफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی. मालिक तेरी अताओं की हद क्या करूँ बयाँ वो भी दिया कि जिस का था वह्म ओ गुमाँ नहीं. मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य. बुधवार, 9 अक्तूबर 2013. लंबा अरसा गुज़र जाता है और शायद आप लोग. भूलने लगते होंगे तो मैं फिर कुछ न कुछ. ले कर हाज़िर हो जाती हूँ और. ब्लॉग की सालगिरह भी है. सपनों में तू आया कर. स्वर्ग की सैर कराया कर. नफ़रत की चिंगारी पर. प्रेम सुधा बरसाया कर. चाँद को पाना नामुमकिन. चातक को समझाया कर. नाउम्मीदी कुफ़्र भी है. आस के दीप जलाया कर. इतना मत इतराया कर. नई पोस्ट. पत्थर...